हिमायल के चारो धाम पर तरह तरह की तबाही आई पर चारों धाम आज एकदम सुरक्षित है. यहाँ के व्यवस्थापको ने इसको अच्छे से संभाल कर रखा और पूरा अच्छे से ध्यान रखा. इन सभी मंदिरों में कुछ बदलाव तो किये गये पर उसका मूलरूप तो जैसा था वैसा ही है.

आज हम आपको उस बात से रूबरू करवाने के लिए जा रहे है की जो बद्रीनाथ में आरती गाई जाती है उसको एक मुसलमान भक्त ने लिखा है, इस मुसलमान भक्त का नाम फखरुद्दीन था. इसकी आरती आज भी इन मंदिरों में गूंजती रहती है.

फखरुद्दीन ने अपना मूल नाम बदल कर बदरुद्दीन कर लिया था. फखरुद्दीन ने 18 साल की उम्र में चमोली जिले के नंदप्रयाग में पोस्ट मास्टर का काम किया था. इन्होने साल 1865 में बद्रीनाथजी की आरती लिख डाली. ये 104 वर्ष की लंबी आयु जिए. इन्होने ने अपनी पूरी उम्र बद्री-केदार की सेवा में लगादी.

इनके परिवार के लोग आज भी बर्दिनाथ में रहते है. इस बात का उल्लेख बद्रीनाथ महात्म्य नामक पुस्तक में है, बदरुद्दीन के पौत्र का कहना है की मेरे दादाजी ने जो आरती लिखी थी उसको सबसे पहले बद्रीनाथ की दिवार पर लिख डाली थी, तभी से लोग दिवार पर से पढ़कर आरती गाते थे. इस बात का हमें कोई खेद नहीं है बल्कि गौरव है की यह आरती एक सच्चे मुसलमान ने लिखी है.

ऐसे कई सारे मुस्लिम महाकवि हमारे देश में हो गये है जैसे की कवीवर रहीम, महाकवि रसखान, महाकाव्यकार मलिक मोहम्मद जायसी जैसे अनेक सच्चे मुसलमानों ने कई सारे श्रेष्ठ रचनाएँ की है जो भजन-कीर्तन आज भी कई सारे मठों और आश्रमों में गाए जाते है.
इस बात का जीता जागता उदाहरण आपको दे दे तो वोह है भाई अब्दुल जब्बार जो की राजस्थान के चित्तौड़गढ़ से ताल्लुक रखते है. इनको पिछले कई सालो से हिंदी कवी मंच पर सुसम्मानित किया जाता है, जिन्होंने गंगा गीत ''निर्मल नीर गंगा का" लिखा है जो आज भी हरिद्वार में हरकी पौड़ी पर गाया, बजाया और सुना जाता है. इन सभी के बारें में एक महाकवि ने लिखा भी है की -"ऐसे मुसलमान पर कोटिन हिन्दू वारिये।" जो हमारे लिए फक्र की बात है. ठीक ऐसे ही यदि हम हिन्दू है तो मुसलमानों की इज्जत करनी चाहिए और मुसलमान है तो हिन्दू की इज्जत करनी चाहिए, आखिर हम सभी का सबसे पहला धर्म आता है “इंसानियत” का जो हमें अदा करना चाहिए. इस बारे में आपके क्या विचार है हमें जरुर बताये.
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