यह कहानी है एक ऐसी किले की जिस किले में अनेकों भूत-प्रेतों का बास था| वहां पर रहने वाले व्यक्ति भूत और प्रेतों की कहानियां ही नहीं सुनाते थे...
यह कहानी है एक ऐसी किले की जिस किले में अनेकों भूत-प्रेतों का बास था| वहां पर रहने वाले व्यक्ति भूत और प्रेतों की कहानियां ही नहीं सुनाते थे बल्कि; उन्हें आते जाते देखा भी करते थे । भूत प्रेत दिन में और रात में भी उस किले के चारों ओर घूमा करते थे, किले के नजदीक गांव में से एक भी मनुष्य दोपहर के समय घर से बाहर नहीं निकला करता था| हर एक व्यक्ति जानता था कि दोपहर के समय पर और अर्धरात्रि के समय पर यहां भूत-प्रेत अपने पूर्ण रूप में आकर चारों ओर घूमते हैं ;उस किले में वहां के राजा ने अनेकों यज्ञ कराए उन भूत प्रेतों की मुक्ति के हेतु; परंतु उन भूत प्रेतों के मुक्त करने के लिए जिस किसी भी विद्वान गुरुजनों या संतो या तांत्रिकों को बुलाया जाता था । वह तंत्रिक पागल हो जाया करता था, ऐसा अनेकों बार हुआ वहां कई ब्राह्मण कई विद्वान और कई तांत्रिक वहां पागल हो गए जिस के भय के कारण कोई भी वहां पर उन प्रेतों की मुक्ति के लिए प्रयास नहीं किया करता था| परंतु किले के राजा थे जिस किले में भूत प्रेत रहा करते थे उसी किले के राजा नाम भूपति था वह उन प्रेतों की मुक्ति चाहते थे, और वह अपने किले को दोबारा से बनवाना चाहते थे।
परंतु भूत प्रेतो के भय के कारण कोई भी व्यक्ति वहां ना जाए वहा कोई एक भूत नहीं था अनेकों भूत प्रेतो का बास था वहां पर इसी कारण उस किले के वंशज ने विचार किया क्यों ना मैं अनजान और दूरदराज से किसी जाने-माने विद्वानों को लेकर इस समस्या का समाधान किया जाए और उसको किसी ने बताया कि वेद पाठ वह वेद यज्ञ से शीघ्र ही प्रेत बाधाओं वह प्रेतों की मुक्ति से छुटकारा प्राप्त होता है । राजा भूपति विचार करने लगा मैं ऐसे विद्वान कहां से लेकर आए जिसे इस स्थान के विषय में ज्ञात भी ना हो और वह निर्भयता से यहां पर आ जाए, तथा हमें इन सभी प्रेत बाधाओं से मुक्त कराए ,परंतु राजा जहां भी जाता वहां पर कोई ना कोई उन्हें जानने वाला था और किसी की भी हिम्मत नहीं होती कि वह वहां हुमायूंपुर जाए और वहां के प्रेत आदि को मुक्त कर सके । उसके कुछ वक्त बाद उन की एक विद्वान से भेंट हुई और पता चला है वह विद्वान भी वेदो का ज्ञान रखता है अर्थात वेदपाठी है|
उसने विद्वान ब्राह्मण को प्रणाम किया और प्रार्थना कि आप मेरे यहां वेद पाठ करें, अर्थात वेद यज्ञ करें परंतु उसने सच नहीं बताया उस विद्वान ने अपने साथ कुछ वेदपाठी छात्रों को साथ में लिया और वहां पर यज्ञ आदि करने के लिए निकल गए मार्ग में जा रहे थे| जिस बैलगाडी का प्रयोग कर रहे थे उस बैलगाड़ी के दोनों पहिए निकल गए , इससे उन्हें ज्ञात हो गया कि वह जहां भी जा रहे हैं वह बहुत ही शक्तिशाली भूत-प्रेतों का स्थान है जहां पर पहुंचने में इतना विघ्न पैदा हो रहा है| परंतु फिर भी उन्होंने हृदय में अपने गुरु को प्रणाम किया और वह आगे चल दिए मार्ग में जब वह चल रहे थे| उसी समय उन्होंने क्या देखा कि जिस स्थान से वह गुजर रहे हैं वहां पर दो मार्ग बने हुए हैं| बैलगाड़ी को रोका और किसी से पूछा यहां पर पहले कोई मार्ग नहीं था यह दूसरा मार्ग कहां से आया वहां पर एक व्यक्ति बैठा हुआ था | एक छोटी सी लाठी लेकर वह खड़ा हुआ और उसने जवाब दिया यह मार्ग हुमायूंपुर की ओर जाता है | लेकिन अब वह दो मार्ग की वजह से भ्रमित हो गए क्योंकि वहां पहले कोई दूसरा मार्ग नहीं था; परंतु वेद पाठी ब्राह्मण क्या करते उनके पास कोई भी दूसरा मार्ग नहीं था और वह भूत प्रेतों के बनाए हुए मार्ग पर चल दिए और और थोड़ी दूर निकले ही थे कि भूत-प्रेतों ने अपनी शक्तियों का प्रयोग करना आरंभ कर दिया ऐसी ऐसी घटनाएं उनके सामने घटने लगी जो उनके जीवन की कमजोरियां थी| प्रत्येक वेद पाठी अपनी अपनी कमजोरियों को देखकर भयभीत होने लगे पागलों सी हरकत करने लगे परंतु वेद पाठीयों ने अपने गायत्री मंत्र के बल पर अपनी समस्त ध्यान शक्ति को एकाग्र किया और उन्होंने वहीं पर वेद पाठ आरंभ कर दिया तो क्या देखा सभी के सभी वेदपाठी ब्राह्मण एक जंगल में हैं ;
अर्थात कोई भी मार्ग नहीं था| बड़ी मुश्किलों के साथ वह उस जंगल से बाहर निकले और सही मार्ग पर आए और फिर उन्होंने यात्रा आगे की आरंभ कर दी कई प्रकार की कठिनाई बाधाएं आई फिर भी वह हुमायूंपुर जा पहुंचे जाते ही उन्होंने उस किले के वंशज को बुलाया और कहा क्या कोई ऐसा रहस्य है जो आपने आज तक अभी तक हमें नहीं बताया; वो बात सुन कर किले का वंशज भयभीत हो गया और उसने वेद पाठी ब्राह्मण के सामने सर को झुका दिया| और कहा प्रभु मुझसे गलती हो गई मैंने आपको यहां के विषय में सही सही बात नहीं बताई हमारे 100 वर्ष से पूर्व हमारे वंश में एकराजकुमार ने बताया कि वह एक शुद्र कन्या से प्रेम करता है हमारे पूर्वजों को यह बात सुनकर शर्मिंदगी लगी उन्होंने राजकुमार को समझाया पर जब वह नहीं माना तो उन पूर्वजों ने उस शूद्र कन्या सहित राजकुमार को दीवाल में चिन्वा दिया ; परंतु प्रेम शक्ति आत्मिक शक्ति के बल पर वह दोनों ही प्रेमी उस दीवाल के भीतर कई वर्षों तक जीवित रहे; वह आपस में जब भी बात किया करते थे तो वह आवाज रात्रि के समय आसपास के लोगों को सुनाई दिया करती थी। जब लोगों ने पूछा कि इस दीवाल में कौन है तो राजकुमार ने अपने पिता सहित नाम बताया कि मैं राजा महि का पुत्र हूं |और मुझे इस दीवाल में चिन्वा दिया गया था तब लोगों को दया आई और उन्होंने सोचा कि इन्हें बाहर निकाला जाए ,और जैसे ही उन्हें बाहर निकालने का प्रयास किया गया तो उसमें से जो राजकुमार था वह बिना किसी चोट के आराम से दीवाल से बाहर आ गया; लेकिन जब उसे कन्या को निकालने का प्रयास किया जा रहा था| निकालने वाला चूक गया और गलती से एक लोहे की रॉड उस कन्या के पेट में घुस गई जिस के कारण उस कन्या की मृत्यु हो गई और उसी समय भयंकर ध्वनि हुई और संपूर्ण किला गिर गया और किले में जितने भी व्यक्ति थे वह सभी उसी किले में दबकर मर गए,
मरे हुए सभी व्यक्ति अब उसी किले में भूत प्रेत वन कर चारों ओर घूमते हैं; और जो भी व्यक्ति इस स्थान को खरीदने या बेचने का प्रयास भी करता है तो भूत-प्रेत उसे मिलकर मृत्यु दंड देते हैं और यदि कोई ब्राह्मण तांत्रिक गुरु जन कोई इनकी मुक्ति का प्रयास करें, तो उसे पागलपन की स्थिति में पहुंचा देते हैं आज तक की स्थिति में कोई भी व्यक्ति इन भूत-प्रेतों को मुक्त नहीं कर पाया है |और चारों ओर इस विषय पर हर एक व्यक्ति चर्चा करता है इसीलिए कोई भी विद्वान ब्राह्मण यहां आने के लिए तैयार नहीं होते इसीलिए मैं आपको बिना बताए यहां लेकर आया हूं |
इसलिए गुरुदेव मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं और अपने गलती की क्षमा मांगता हूं| आप मुझे क्षमा कर दीजिए सभी विद्वान ब्राह्मण उस किले की ओर देखने लगे ; सभी वेद पाठी ब्राह्मणों ने वेद पाठ की तैयारियां आरंभ की तैयारी 3 दिन में पूर्ण हुई । और उसके पश्चात वेद पाठ आरंभ हुआ वेदों का पाठ आरंभ हुआ सभी विद्वानों ने एक साथ मिल कर वेद पाठ आरंभ किया वेद पाठ के प्रभाव से सभी भूत प्रेत ब्रह्मफास में बंध गए और ब्रह्मफास में बंधे हुए भूत प्रेत अपनी शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकते वेद मंत्रों का प्रभाव बढ़ता चला गया और सभी प्रेत अपनी अपनी शक्तियों को खोते चले गए 7 दिन संपूर्ण पाठ होने के पश्चात सभी विद्वान ब्राह्मणों ने उस यज्ञ की पूर्णाहुति की वेद यज्ञ की पूर्णाहुति के प्रभाव से हर एक प्रेत यज्ञ में भस्म होता चला गया | यज्ञ के 2 दिन पश्चात तक उसके किले में से भूत प्रेतों की चीख की आवाजें चारों दिशाओं में गूंजने लगी और तीसरे दिन की सुबह से हुमायूंपुर की चारों दिशाएं भूत प्रेतों के भय से मुक्त हो गई //
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